भारत की आर्थिक वृद्धि की कहानी अक्सर देश के बढ़ते अरबपतियों और विशाल धन सृजन की संख्या से आंकी जाती है, जो इसे दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में स्थापित करती है। नवीनतम हुरुन इंडिया रिच लिस्ट (Hurun India Rich List) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में अब ₹1,000 करोड़ से अधिक की संपत्ति वाले 1,687 व्यक्ति हैं, जबकि 358 अरबपति (लगभग ₹8,500 करोड़ से अधिक संपत्ति) हैं। सामूहिक रूप से, ये व्यक्ति देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग आधे के बराबर संपत्ति रखते हैं। यह आंकड़ा निस्संदेह भारत के आर्थिक उत्थान का प्रतीक है।
हालांकि, जब इस अभूतपूर्व समृद्धि के भौगोलिक वितरण का गहराई से विश्लेषण किया जाता है, तो एक विषम और असमान तस्वीर उभरती है। यह धन देश के कोने-कोने में समान रूप से वितरित होने के बजाय, कुछ चुनिंदा राज्यों और शहरों में अत्यधिक केंद्रित है।
दस राज्यों का वर्चस्व
आंकड़ों के अनुसार, भारत की अधिकांश समृद्धि केवल दस राज्यों तक ही सीमित है। महाराष्ट्र, दिल्ली, तमिलनाडु, कर्नाटक और गुजरात मिलकर देश के आधे से अधिक करोड़पति परिवारों को आश्रय देते हैं। इसमें तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा को और जोड़ दें, तो ये दस राज्य मिलकर देश की 90% से अधिक समृद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इसका स्पष्ट अर्थ है कि भारत की अधिकांश नई संपत्ति का सृजन और उपभोग कुछ मुट्ठी भर शहरी केंद्रों—जैसे मुंबई, नई दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद और अहमदाबाद—में ही हो रहा है। देश के शेष हिस्सों के लिए, यह वृद्धि की कहानी अभी भी दूर की कौड़ी लगती है।
अभूतपूर्व एकाग्रता के कारण
धन का अवसर का अनुसरण करना स्वाभाविक है, लेकिन इस मामले में, अवसर ही असमान रूप से वितरित है। महाराष्ट्र, जो मुंबई (भारत की वित्तीय राजधानी) का घर है, ₹1,000 करोड़ से अधिक संपत्ति वाले 548 व्यक्तियों का केंद्र है, जो लगभग पूरे पूर्वी भारत के संयुक्त आंकड़े से अधिक है। इसके बाद दिल्ली (223) और कर्नाटक का स्थान है।
यह स्पष्ट पैटर्न बताता है कि पैसा वहीं रहता है जहाँ बुनियादी ढाँचा काम करता है, वित्तीय नेटवर्क मजबूत हैं, और निवेशक आत्मविश्वास महसूस करते हैं। इन राज्यों में उच्च शहरी घनत्व, कुशल प्रतिभा तक आसान पहुँच और संस्थागत सहायता जैसे कारक हैं जिनकी अन्य क्षेत्रों में अक्सर कमी होती है। मुंबई या बेंगलुरु में किसी व्यवसाय के पास पूँजी, कौशल और खर्च करने वाले उपभोक्ता तक त्वरित पहुँच होती है, जो इंदौर या पटना जैसे शहरों में समान विचार वाले उद्यमियों के लिए विकास की राह को धीमा कर देती है।
एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक और अर्थशास्त्र की प्रोफेसर, डॉ. मृदुला नायर इस क्षेत्रीय असंतुलन पर टिप्पणी करती हैं: “अर्थशास्त्री चेतावनी देते हैं कि यह गहरा भौगोलिक असंतुलन केवल प्राकृतिक बाजार शक्तियों का परिणाम नहीं है, बल्कि राजकोषीय विकेंद्रीकरण की विफलता को भी दर्शाता है। कर प्रोत्साहन से लेकर बुनियादी ढाँचे के आवंटन तक की नीतिगत वास्तुकला उन स्थानों पर विकास को असंतुलित रूप से बढ़ा रही है, जिनके पास पहले से बढ़त है, जिससे देश के बाकी हिस्सों से प्रतिभा और पूंजी का पलायन हो रहा है।”
सामाजिक और आर्थिक लागत
धन के इस भौगोलिक क्लस्टरिंग की सामाजिक और आर्थिक दोनों तरह की कीमत चुकानी पड़ती है। जब समृद्धि कुछ ही कोनों में सिमट जाती है, तो यह सफलता के प्रति लोगों की सोच को भी आकार देती है। झारखंड या असम का कोई भी युवा जानता है कि ‘सफल’ होने के लिए, उन्हें शायद पलायन करना पड़ेगा—बेंगलुरु, गुरुग्राम, या मुंबई। सपनों का यह मौन प्रवासन इस असंतुलन का सबसे बड़ा लक्षण है, जो छोटे राज्यों को उन लोगों से वंचित कर रहा है जो अपने गृह प्रदेश में आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर सकते थे।
इसके अलावा, अत्यधिक एकाग्रता से देश की आर्थिक शक्ति में एक प्रकार की नाजुकता भी पैदा होती है। जब भारत की इतनी अधिक आर्थिक ताकत केवल दस राज्यों के भीतर निहित होती है, तो कोई भी राजनीतिक, पर्यावरणीय या वित्तीय संकट पूरे देश को अप्रत्याशित रूप से प्रभावित करता है। पिछली सदी के आर्थिक विश्लेषण भी इस प्रवृत्ति पर प्रकाश डालते हैं, जिसमें यह बताया गया है कि 2022-23 तक शीर्ष 1% की संपत्ति का हिस्सा 40.1% तक पहुँच गया, जिसे अर्थशास्त्रियों ने ‘अरबपति राज (Billionaire Raj)’ की संज्ञा दी है।
आगे की राह: संतुलित विकास
हुरुन सूची इस बात का आईना है कि भारत ने क्या हासिल किया है, और किन चीज़ों पर अभी भी ध्यान देने की आवश्यकता है। चुनौती केवल अधिक अरबपति बनाने की नहीं है, बल्कि एक ऐसा देश बनाने की है जहाँ लाखों लोग अपने जीवन में उस विकास को महसूस कर सकें।
यह असंतुलन तभी कम हो सकता है जब सरकारें द्वितीय और तृतीय श्रेणी के शहरों में बुनियादी ढाँचे, शिक्षा और डिजिटल पहुँच में बड़े पैमाने पर निवेश करें। जब सड़कों, इंटरनेट और पूंजी का प्रवाह छोटे शहरों में होता है, तो नए अवसर स्वतः ही उसका अनुसरण करते हैं। एक सही मायने में मजबूत अर्थव्यवस्था वह होती है जहाँ प्रतिभा, विचार और काम की गरिमा पूरे मानचित्र पर स्थान पाती है, न कि केवल कुछ चुनिंदा महानगरीय क्षेत्रों में।