एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत की शीर्ष सबसे मूल्यवान कंपनियों ने पिछले सप्ताह अपने बाज़ार मूल्यांकन में करोड़ की भारी सामूहिक गिरावट देखी। यह तीव्र गिरावट मुख्य रूप से सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र द्वारा संचालित थी, जिसमें अग्रणी आईटी प्रमुख टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) ने सबसे बड़ा झटका दर्ज किया। इक्विटी बाज़ार में मंदी की भावना संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा घोषित अचानक प्रतिकूल नीतिगत बदलावों से उपजी थी, जो भारतीय आईटी और फार्मास्यूटिकल्स के लिए एक महत्वपूर्ण बाज़ार है।
सप्ताह के दौरान बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का बेंचमार्क स्वयं अंक, या प्रतिशत तक गिर गया, जो भू-राजनीतिक और नीतिगत बाधाओं, विशेष रूप से अमेरिका से, द्वारा डाली गई गहरी अनिश्चितता को दर्शाता है।
अमेरिका-भारत नीतिगत बाधाएँ
आईटी और फार्मास्युटिकल क्षेत्र भारत की निर्यात अर्थव्यवस्था में दो सबसे बड़े योगदानकर्ता हैं और अमेरिकी बाज़ार तक पहुँचने पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं। विशेष रूप से, एच- वीज़ा भारतीय आईटी कंपनियों के लिए परियोजनाओं को निष्पादित करने के लिए उच्च कुशल पेशेवरों को अमेरिका भेजने का एक अनिवार्य साधन है, एक मॉडल जो महत्वपूर्ण राजस्व उत्पन्न करता है। इसी तरह, अमेरिका भारतीय जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं के लिए सबसे बड़ा एकल बाज़ार है।
हालिया गिरावट का सीधा श्रेय तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन द्वारा की गई दो प्रमुख घोषणाओं को दिया गया: एच- श्रमिक वीज़ा शुल्क में भारी वृद्धि और अमेरिका में ब्रांडेड तथा पेटेंटेड फार्मास्युटिकल आयातों पर प्रतिशत टैरिफ लगाना। ये कदम प्रमुख भारतीय निर्यात उद्योगों के लाभ मार्जिन और परिचालन मॉडल को सीधे तौर पर धमकी देते हैं।
टीसीएस को सबसे बड़ा मूल्यांकन झटका
टीसीएस, जो विश्व स्तर पर एच- वीज़ा धारकों के सबसे बड़े आईटी नियोक्ताओं में से एक है, को शीर्ष- फर्मों में बाज़ार पूंजीकरण में सबसे बड़ी गिरावट का सामना करना पड़ा। इसका मूल्यांकन भारी करोड़ तक गिरकर करोड़ पर आ गया।
इसका प्राथमिक कारण एच- वीज़ा शुल्क (नियोक्ताओं द्वारा भुगतान किया गया) में कथित वृद्धि होकर हो जाना था। इस अचानक वृद्धि से भारतीय आईटी कंपनियों पर भारी लागत दबाव पड़ा है।
ऑनलाइन ट्रेडिंग कंपनी एनरिच मनी के सीईओ पोनमुडी आर ने बाज़ार की प्रतिक्रिया पर प्रकाश डालते हुए पीटीआई को बताया कि वीज़ा शुल्क वृद्धि के कारण “प्रौद्योगिकी शेयरों में भारी अनवाइंडिंग (बिकवाली)” हुई, क्योंकि निवेशक परिचालन लागत में बड़े पैमाने पर वृद्धि और मौजूदा सेवा वितरण मॉडल में संभावित व्यवधान की आशंका में शेयरों को बेचने के लिए दौड़ पड़े।
बाज़ार ने अन्य आईटी दिग्गजों को भी दंडित किया, जिसमें इंफोसिस ने अपने मूल्यांकन से करोड़ खो दिए, जो करोड़ रहा।
व्यापक बाज़ार दबाव और फार्मा क्षेत्र की चिंताएँ
आईटी क्षेत्र से परे, नकारात्मक भावना व्यापक थी। पोनमुडी आर के अनुसार, फार्मा आयातों पर प्रतिशत टैरिफ की धमकी ने भी “भावनाओं को dampen कर दिया, जिसका प्रभाव कई क्षेत्रों में महसूस किया गया और बाज़ार के विश्वास पर भारी पड़ा।”
रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल), देश की सबसे मूल्यवान फर्म के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने के बावजूद, अपने बाज़ार पूंजीकरण में करोड़ की गिरावट देखी, जो करोड़ हो गया। बैंकिंग और वित्त दिग्गजों को भी नहीं बख्शा गया: एचडीएफसी बैंक करोड़ से गिर गया, और आईसीआईसीआई बैंक ने करोड़ की गिरावट देखी।
दीर्घकालिक प्रभाव पर विशेषज्ञ दृष्टिकोण
हालांकि बाज़ार की तत्काल प्रतिक्रिया घबराहट में बिकवाली की रही है, उद्योग विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि शीर्ष आईटी फर्मों पर दीर्घकालिक प्रभाव उनके मजबूत और विविध व्यापार मॉडल के कारण प्रबंधनीय हो सकता है।
मुंबई स्थित एक प्रमुख थिंक टैंक के भू-राजनीतिक अर्थव्यवस्था विश्लेषक डॉ. संजीव सिंह ने टिप्पणी की, “शुल्क वृद्धि निश्चित रूप से निकट अवधि में मार्जिन को कम करती है, लेकिन टीसीएस जैसी कंपनियों के पास अत्यधिक विविध राजस्व धाराएँ और सुस्थापित अपतटीय वितरण केंद्र हैं। वे अपनी वैश्विक प्रतिभा पूल का अनुकूलन करके और अपने भारत-आधारित तथा निकट-किनारे के संचालन पर निर्भरता बढ़ाकर इस लागत के एक बड़े हिस्से को अवशोषित करने की संभावना रखते हैं। हालांकि, छोटी आईटी कंपनियों के लिए, यह नीति अमेरिकी बाज़ार में प्रवेश और विस्तार के लिए एक महत्वपूर्ण बाधा साबित हो सकती है।”
निवेशकों के लिए मुख्य निष्कर्ष यह है कि जबकि भू-राजनीतिक नीतिगत झटकों के कारण बाज़ार अस्थिर है, विविध वैश्विक पदचिह्न वाली शीर्ष आईटी और वित्तीय कंपनियों की मूलभूत ताकत काफी हद तक बरकरार है, हालांकि उन्हें वीज़ा-निर्भर कर्मचारियों पर निर्भरता कम करने के लिए अपने सेवा वितरण मॉडल में नवाचार करने के लिए नए सिरे से दबाव का सामना करना पड़ रहा है।