मुजफ्फरनगर की पेपर मिलों पर संकट के बादल, एक अक्टूबर से उल्टी गिनती शुरू, 3 हजार करोड़ का होगा नुकसान !!

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के नोटिस ने मिल मालिकों की उड़ाई नींद, पेपर मिलों में कोयला जलाने पर लगाया प्रतिबंध
 
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वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने नोटिस जारी कर दिल्ली-एनसीआर के अंतर्गत आने वाली तमाम औद्योगिक ईकाईयों में कोयले के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। एक अक्टूबर से केवल बायोमास या पीएनजी गैस ही उपयोग किया जाएगा, जिसके बाद से मुजफ्फरनगर की पेपर मिलों पर संकट के बादल छा गए हैं। अगर आयोग नहीं माना तो जिले की 30 पेपर मिले बंद होने के आसार है। जब से मिल मालिकों को ये नोटिस मिला है, तब से उनकी नींद हराम हो गई है। 

 

  • प्रधान संपादक अमित सैनी की ख़ास रिपोर्ट

मुजफ्फरनगर। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के एक नोटिस ने पेपर मिल मालिकों की ही नहीं, उससे जुड़े करीब 60 हजार लोगों की नींद हराम कर दी है। आयोग ने स्पष्ट आदेश दिए हैं कि एक अक्टूबर 2022 से सभी पेपर मिलों में बायोमास या पीएनजी गैस ही इस्तेमाल किया जाएगा। 30 सितंबर के बाद से किसी भी पेपर मिल में कोयला नहीं जलाया जाएगा। इस आदेश के बाद से मुजफ्फरनगर और शामली की 30 पेपर मिलों पर बंदी का संकट गहराना शुरू हो गया है। क्योंकि पेपर मिल मालिकों का कहना है कि डिमांड के हिसाब से बायोमास मिल नहीं पाता और पीएनजी गैस उपलब्ध नहीं है। दूसरा सबसे बड़ा कारण ये भी है कि पीएनजी गैस औसतन तीन गुणा महंगी पड़ती है। ऐसी परिस्थितियों में पेपर उद्योग चलाना ज़हर हो जाएगा, जिस कारण उन्हें मजबूरन पेपर मिल बंद ही करने पड़ेंगे।

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आयोग द्वारा जारी किया गया 5 पेज का नोटिस

कब, क्यों, क्या और किसने जारी किया है नोटिस?
दरअसल, दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता की देख-रेख के लिए बनाए गए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा ये आदेश जारी किया गया है। 4 फरवरी को आयोग सदस्य/सचिव अरविंद नौटियाल ने यूपी, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली समेत उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिवों को दिल्ली-एनसीआर में आने वाले सभी जिलों/स्थानों पर कोयला जलाने पर प्रतिबंध लगाते हुए ये नोटिस जारी किया गया था, जिसके बाद ये नोटिस हाल ही में पेपर मिल मालिकों के पास पहुंचा तो हड़कंप मच गया। 5 पेज के इस नोटिस में 30 सितंबर 2022 के बाद से कोयला और प्रदूषण फैलाने वाले पदार्थों के जलाने को प्रतिबंधित किया गया है। इसके पीछे दिल्ली-एनसीआर के अंतर्गत आने वाले मुजफ्फरनगर समेत तमाम जिलों में वायु प्रदूषण की बेतहासा हो रही बढ़ोत्तरी पर लगाम लगाने की कोशिश है। आयोग का मानना है कि कोयले के इस्तेमाल से वायु गुणवत्ता सूचकांक यानि एक्यूआई लगातार बढ़ रहा है।
 

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बायोमास ईंधन (फाइल फोटो)

क्या है बायोमास ईंधन?
असल में बायोमास वो मैटिरियल है जिसके दोहन यानि फूंकने से कम प्रदूषण होता है। बायोमास ईंधन को हम ऐसे भी समझ सकते है। जीवित अथवा हाल ही में काटे गए पेड़-पौधों से प्राप्त होने वाला पदार्थ ही बायोमास यानि जैव भार/मात्रा कहलाता है। बायोमास ऊर्जा के स्रोत हैं। इन्हें सीधे जलाकर इस्तेमाल किया जा सकता है या इनको विभिन्न प्रकार के जैव ईंधन में परिवर्तित करने के बाद इस्तेमाल किया जा सकता है। गन्ने की खोई, धान की भूसी और अनुपयोगी लकड़ी आदि बायोमास के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है।

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पेपर मिल के लिए ट्रेक्टर-ट्रॉली द्वारा ले जाई जा रही खोई (बायोमास ईंधन) फोटोः यश चौधरी, समाचार टुडे

रोजाना चाहिए करीब  5 हजार टन बायोमास ईंधन
पेपर मैन्युफैक्चर एसोसिएशन (यूपी) अध्यक्ष और बिंदल डुप्लक्स के मालिक पंकज अग्रवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि मुजफ्फरनगर की 30 पेपर मिलों में 107 मेगावाट टरबाइन है, जिनको बिना कोयला चलाना बेहद मुश्किल भरा काम है। जानकारों के मुताबिक इन टरबाइन्स में रोजाना करीब 3500 टन ईंधन की खपत होती है, जिनमें से करीब 2 हजार टन कोयला प्रतिदिन जलाया जाता है। मतलब रोजाना करीब साढ़े तीन करोड़ रुपये का ईंधन फुंकता है। आयोग के मुताबिक अब बायोमास का इस्तेमाल करें तो प्रतिदिन जिले की इन मिलों में 5 हजार टन भूसी, खोई अथवा लकड़ी आदि की जरूरत होती है। लेकिन सबसे बड़ी परेशानी ये है कि इन मिलों को खपत का केवल 30 प्रतिशत ही बायोमास इंर्धन उपलब्ध हो सकता है। रही बात पीएनजी गैस की तो वो यहां पर उपलब्ध नहीं है और वो महंगा भी करीब 3 गुणा पड़ती है। यानि करीब 9 से 10 करोड़ की रोजाना गैस की खपत होगी, जिससे सीधे तौर पर पेपर मिलों की आर्थिक दशा पर प्रभाव पड़ेगा।

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कोयला (फाइल फोटो)

बरसात में बिन कोयला काम संभव नहीं?
सबसे बड़ी बात ये है कि बरसात के दिनों में नमी होने की वजह से बायोमास ईंधन से काम चला पाना संभंव नहीं है। बायोमास इंर्धन को बारिश और पानी से बचाने के लिए उनके रख-रखाव का भार भी मिल मालिकों पर बढ़ेगा। दूसरी बात ये है कि नमी की वजह बायोमास ईंधन जल नहीं पाता, ऐसे में कोयला बिना फैक्टरी/टरबाइन चला पाना बेहद मुश्किल भरा कार्य हो सकता है।
मिल बंद होने से लगेगा 3 हजार करोड़ का चूना!
पंकज अग्रवाल के मुताबिक मुजफ्फरनगर और शामली में वैसे तो कुल 33 पेपर मिल्स हैं, लेकिन इनमें से विभिन्न कारणों की वजह से 3 अरिहंत पेपर, रोयल इंडिया पेपर और शालीमार पेपर मिल बंद हो चुकी है। बाकी 30 मिलों की अगर प्रत्येक कैपिटल इन्वेस्टमेंट की बात करें तो औसतन 100 करोड़ रुपये है। यानि अगर ये सभी पेपर मिले बंद होती हैं तो सीधे तौर पर मिल मालिकों को 3 हजार करोड़ रुपये का चूना लगेगा।

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मुजफ्फरनगर के भोपा रोड पर स्थित पेपर मिल (फोटोः यश चौधरी, समाचार टुडे)

प्रभावित होंगे 60 हजार लोग और उनके परिवार
अगर ऐसा हुआ और सभी पेपर मिल्स बंद हुई तो जिले की ही नहीं, बल्कि प्रदेश और देश की आर्थिक व्यवस्था को बहुत बड़ा आधात पहुंचेगा। मुजफ्फरनगर और शामली की इन 30 पेपर मिलों में प्रत्यक्ष रूप से करीब 15 हजार लोग काम करते हैं, जबकि 45 हजार लोग अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं, जिनके रोजगार और परिवार इन्हीं पेपर मिल्स की बदौलत फल-फूल रहे हैं। यानि अगर भविष्य में ऐसा हुआ और सभी मिले बंद हुई तो तकरीबन 60 हजार लोग सीधे तौर पर प्रभावित होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
कोयला कारोबार भी होगा प्रभावित
कोयले पर प्रतिबंध से केवल पेपर मिल अथवा अन्य उद्योग पर ही प्रभाव नहीं पड़ेगा, बल्कि कोयला कारोबार से जुड़े लोगों की जान भी सांसत में आ जाएगी। मुख्य रूप से पेपर मिल्स आसाम, मध्य प्रदेश और वेस्ट बंगाल से कोयला का आयात करती हैं। हालांकि ये सीधे तौर पर कम, स्थानीय स्तर के कारोबारियों की मध्यस्था से ज्यादा मंगाया जाता हैं। ऐसे में कोयला कारोबारियों के भी बर्बाद होने के ज्यादा संभावना होगी।

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(फाइल फोटो)

ज़िले में चीनी से दोगुना पेपर का उत्पादन
आपको जानकर हैरत होगी कि जिस जिले मुजफ्फरनगर को बाउल ऑफ शुगर यानि चीनी का कटोरा कहा जाता है और जहां एशिया की सबसे बड़ी गुड़ मंडी हो, जो गुड़ और गन्ने की मिठास के लिए जाना जाता हो, उस जिले में चीनी से कहीं ज्यादा पेपर का उत्पादन होता है। हो गए ना सुनकर हैरान? तो जनाब हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि ये ऑन रिकॉर्ड आंकड़े हैं कि जहां मुजफ्फरनगर जिले में महज 10 लाख टन चीनी का प्रतिवर्ष उत्पादन किया जाता है, जबकि जिले में चीनी से दोगुणा यानि 20 लाख टन पेपर का प्रतिवर्ष उत्पादन किया जाता है।
मुजफ्फरनगर में यूपी का 40 और देश का 8 फीसदी पेपर का उत्पादन
आपको जानकर ये भी हैरत होगी कि जितना उत्पादन उत्तर प्रदेश की सभी पेपर मिलों में पेपर का उत्पादन होता है, उसका 40 प्रतिशत उत्पादन अकेले मुजफ्फरनगर और शामली जिलों में होता है, जो कि देश के कुल पेपर उत्पादन का 8 प्रतिशत उत्पादन है।

PANKAJ AGARWAL

'आयोग ने कोयले के इस्तेमाल पर रोक लगाई है। बायोमास अथवा पीएनजी गैस इस्तेमाल करने को कहा जा रहा है। मुजफ्फरनगर में पीएनजी गैस उपलब्ध नहीं है। बायोमास ईंधन भी डिमांड का करीब 30 प्रतिशत ही उपलब्ध हो पाता है। वैसे भी पीएनजी गैस तीन गुणा महंगी पड़ती है। हम आयोग से पुर्नविचार के लिए गुज़ारिश कर रहे हैं। अगर सुनवाई नहीं हुई तो मजबूर पेपर मिले बंद करनी पड़ेगी।' -पंकज अग्रवाल, अध्यक्ष, पेपर मैन्युफैक्चर एसोसिएशन, यूपी एवं उपाध्यक्ष, आईएआरपीएमए, दिल्ली


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