लखनऊः बिल्डर ने पॉश इलाके में स्थित शत्रु संपत्ति पर खड़ी की 5 मंजिला बिल्डिंग

एलडीए में तैनात रहे संपत्ति अधिकारी पर लगा जमीन बेचने का आरोप

 
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  • रिपोर्टः ज्ञानेश वर्मा

लखनऊ। सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ के सख्त आदेशों के बाद भी भूमाफियाओं में कोई खौफ नहीं हैं. शत्रु संपत्तियों पर भी कब्जा करना शुरु कर दिया है। ऐसा ही एक मामला प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सामने आय़ा है। जहां एलडीए में तैनात रहे सम्पत्ति अधिकारी पर शत्रु संपत्ति को बिल्डर को बेचने का आरोप लगा है. और बिल्ड़र ने इस जमीन पर 5 मंजिला इमारत खड़ी कर दी है। हैरत की बात ये रही की इस ओर किसी जिम्मेदार अफसर की निगाह नहीं गई।

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लखनऊ के पॉश इलाके में आने वाले भूखंड संख्या 18 ए(6/1बी) पर बनी बिल्डिंग शत्रु संपत्ति पर खड़ी है। इसका मालिक मेसर्स एस. गुप्ता बिल्डटेक लिमिटेड है। मेसर्स एस गुप्ता बिल्डटेक लिमिटेड के मालिक आलोक गुप्ता का कहना है कि साल 2010 में एलडीए से रजिस्ट्री के माध्यम से उन्होंने भूखंड खरीदा है। जबकि मामले में तत्कालीन एलडीए के संपत्ति अधिकारी शरद पाल का कहना है कि उन्हें इस मामले की कोई जानकारी नही है। वहीं इस मामले में आरटीआई द्वारा रजिस्ट्रार प्रथम से जानकारी मिली की उनके पास इस बाबत कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है।

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दरअसल ये जमीन देश के बंटवारे के समय पाकिस्तान चली गई फिरोजा बेगम की है। जिस पर बाद में कुछ लोगों ने अवैध तरीके से अपना आशियाना बना लिया। करीब चार हजार वर्ग मीटर के बेशकीमती भूखंड पर बाद में बिल्डर आलोक गुप्ता की नजर पङी। जिस पर इन्होने वहां मौजूद लोगों को डरा-धमकाकर भगा दिया और जिसके बाद लखनऊ विकास प्राधिकरण में तैनात रहे तत्कालीन नायब तहसीलदार (सम्पत्ति अधिकारी) के साथ मिलकर फ्री होल्ड करा लिया। इतना ही नहीं पॉश इलाके की करोड़ों-अरबों की बेशकीमती जमीन पर अपार्टमेंट बनाकर बेंच डाले।

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वहीं शासन में तैनात रहे अनुसचिव आत्माराम वर्मा ने 20 अप्रैल 2010 को प्रमुख सचिव आवास को लिखे अपने पत्र में एलडीए के तत्कालीन प्रभारी सम्पत्ति अधिकारी शरद पाल पर कङी कारवाई करने का अनुरोध किया था। शरद पाल वर्तमान में ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी में बतौर एसडीएम तैनात हैं।

क्या है निष्क्रांत भूमि और शत्रु संपत्ति?

बता दें कि देश के भू-दस्तावेज में वे लोग जो 1947, 1962, 1965 में देश छोड़कर पाकिस्तान और चीन चले गए थे। उनकी संपत्ति दर्ज हैं। इसे ही निष्क्रान्त सम्पत्ति कहा गया है। 1968 में शत्रु संपत्ति अध्यादेश आने के बाद इन संपत्तियों पर केंद्र सरकार के अंतर्गत गृह मंत्रालय का अधिकार हो गया। इसे ही शत्रु सम्पत्ति कहा गया।


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