Death Anniversary: एक अकेले योद्धा को घेर..अंग्रेजों ने जाल में फांस ली, प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में.. आजाद ने अंतिम सांस ली

नई दिल्ली। निडर, सहज और निष्कलंक चरित्र वाला इतिहास में अगर किसी का नाम है तो वह सिर्फ और सिर्फ 'पं. चंद्रशेखर आजाद' ही है..... 15 साल की उम्र में जब अंग्रेजी सरकार ने उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी...तभी उन्होंने प्रण लिया कि वे अब कभी पुलिस के हाथ नहीं आएंगे...आज ही के दिन 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद में चंद्रशेखर आजाद शहीद हो गए थे। देश के इस युवा क्रांतिकारी ने अपने देश के लिए हंसते—हंसते प्राण न्योछावर कर दिए।
जीवन परिचय
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भाबरा गांव में एक ब्राह्मण परिवार में 23 जुलाई 1906 को हुआ था। उनके पूर्वज उन्नाव जिला (बैसवारा) से थे। आजाद के पिता पण्डित सीताराम तिवारी अकाल के समय अपने पैतृक निवास बैसवारा को छोड़कर पहले कुछ दिनों मध्य प्रदेश अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे फिर जाकर भाबरा गांव में बस गये। उनकी मां का नाम जगरानी देवी था।
कैसे बने क्रांतीकारी
बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष-बाण चलाये और निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी। चन्द्रशेखर आज़ाद का देश को आज़ाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रान्ति की ओर मुड़ गया। उस समय बनारस क्रान्तिकारियों का गढ़ था। वह मन्मथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आये और क्रान्तिकारी दल के सदस्य बन गये। क्रान्तिकारियों का वह दल "हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ" के नाम से जाना जाता था।
जलियांवाला बाग कांड
जलियांवाला बाग कांड के बाद चंद्रशेखर ने यह समझ लिया था कि आजादी बात से नहीं ..बंदूक से मिलेगी..हालांकि उन दिनों महात्मा गांधी और कांग्रेस का अहिंसात्मक आंदोलन अपने चरम पर था और पूरे देश में उन्हें भारी समर्थन मिल रहा था...चंद्रशेखर आजाद ने भी महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और सजा पाई लेकिन चौरा-चौरी कांड के बाद जब आंदोलन वापस लिया गया तो आजाद का कांग्रेस से मोहभंग हो गया, चंद्रशेखर आजाद ने बनारस का रुख किया।
काकोरी कांड
काकोरी कांड में देश के महान क्रांतिकारियों रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशनसिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी...दल के दस सदस्यों ने इस लूट को अंजाम तक पहुंचाया और अंग्रेजों के खजाने को लूट लिया। इस घटना के बाद दल के ज्यादातर सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए...लेकिन कई प्रयासों के बाद भी अंग्रेज सरकार उन्हें नही पकड़़ सकी। इसके बाद छुपते-छुपाते आजाद दिल्ली पहुंचे जहां के फिरोजशाह कोटला मैदान में सभी बचे हुए क्रांतिकारियों की गुप्त सभा आयोजित की गई जिसमें महान क्रांतिकारी भगतसिंह भी शामिल हुए। फिर नये दल का गठन हुआ जिसे नाम दिया गया-हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशना... आजाद को इसका कमाण्डर इन चीफ बनाया गया...
निधन
अपने प्रण के अनुसार आजाद ने कभी भी अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार नहीं हुए और 27 फरवरी 1931 के दिन अंग्रेजों के साथ लड़ते हुए अपना नाम हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज कर लिया।
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