Death Anniversary: सदियों से समाज के कुप्रथाओं की बेड़ियों में बंधी थी महिलाएं...एक क्रांति..सावित्रीबाई फुले की आवाज ने बदल दिया इतिहास

आज भले ही महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हो लेकिन एक समय था जब ससमाज की कुरीतियों और कुप्रथाओं को बेड़ियों ने महिलाओं को ऐसे बांध रखा था कि उनका अस्तित्व ही समाज में ना के बराबर था...फिर देश में कई समाज सुधारक आए जिनके नेतृत्व में महिलाओं ने आगे बढ़ना सिखा और अपने हक के लिए लड़ना सिखा ...ऐसी ही एक और क्रांती आई.....जिसका नाम था सावित्रीबाई फुले...
18वीं सदी में सावित्रीबाई फुले ने बाल-विवाह, सती प्रथा, जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई.....और महिलाओं के आगे बढ़ने की एक नई दिशा मिली....आज उनकी पुण्यतिथि पर आइए जानते है इनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें...
जीवन परिचय
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1931 को महाराष्ट्र के सतारा के नायगांव में हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था।
विवाह
महज 10 साल की उम्र में 1840 में सावित्रीबाई फुले की शादी 13 साल के ज्योतिबाराव से हो गई थी।
महिलाओं के लिए खोले 18 स्कूल
सावित्रीबाई ने साल 1848 से लेकर 1852 के बीच लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले थे। महज 17 साल की उम्र में ही वह अध्यापिका और प्रधानाचार्या बन गईं थीं। कम उम्र में उनके इस ऐतिहासिक कदम में उनका साथ उनके पति व सामाजिक क्रांतिकारी नेता ज्योतिबा फुले ने दिया था।
निधन
10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा के दौरान प्रभावित बच्चे के संपर्क में आने के कारण इनको भी यही बीमारी हो गई जिससे उनका निधन हुआ।
उपलब्धियां
साल 1998 में भारत ने सावित्रीबाई के सम्मान में डाक टिकट जारी करके उन्हें श्रद्धांजलि दी थी।
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