Death Anniversary: मात्र कविताओं में ही नहीं ..वीरता से भरीं है भारत की पहली महिला सत्याग्रही सुभद्रा कुमारी चौहान की दास्तां..

नई दिल्ली। खूब लड़ी मर्दानी वह वह तो झांसी वाली रानी थी....जैसी महान स्वतंत्रा सेनानियों के जीवन पर और वीर रस की कविताएं लिखने वाली महान कवियत्री सुभद्रा कुमारी स्वयं भी भारत की पहली महिला सत्याग्रही थी। स्कूल की किताबों से लेकर जिंदगी के रंगमंच तक बार-बार उनकी यह कविता दिलोदिमाग में जोश भर देती है।
जीवन परिचय
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त, 1904 में प्रयागराज के निहालपुर में हुआ था। सुभद्रा कुमारी ने क्रॉस्टवेट गर्ल्स स्कूल में पढ़ाई की और 1919 में मिडिल-स्कूल पास किया। मात्र 16 साल की उम्र में सुभद्रा कुमारी चौहान की शादी खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान कर दिया गया।
नौ साल की उम्र में लिखी थी पहली कविता
सुभद्रा की पढ़ाई जिस स्कूल में हुई थी वहां हिंदी की मशहूर कवयित्री महदेवी वर्मा भी पढ़ती थीं। सुभद्रा कुमारी उनकी सीनियर थीं। सुभद्रा कुमारी चौहान ने नौ साल की उम्र में अपनी पहली कविता लिखी थी। शीर्षक था- नीम। उनकी पढ़ाई सिर्फ 9वीं कक्षा तक ही हुई।
असहयोग आंदोलन
सुभद्रा कुमारी चौहान और उनके पति लक्ष्मण सिंह 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हुए थे। संघर्ष के दौरान दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया। सुभद्रा कुमार को नागपुर जेल भेजा गया और वह भारत की पहली महिला सत्याग्रही बन गई।
स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका
जेल जाने के बाद भी सुभद्रा कुमारी चौहान का संघर्ष रुका नहीं। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना जारी रखा। जेल से रिहा होने के बाद सन् 1942 में वह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हुईं। स्वतंत्रता सेनानी के रूप में, सुभद्रा कुमारी चौहान का संघर्ष भारत की आजादी के दिन तक जारी रहा।
चर्चित कविताएं
'झांसी की रानी' कविता के अलावा उनके कुछ चर्चित कविता संग्रह हैं- खिलौनेवाला, मुकुल, ये कदम्ब का पेड़. उनकी एक लघु कथा हींगवाला भी काफी चर्चित रही।
उपलब्धियां
देश ने उनके नाम पर एक तट रक्षक जहाज का नामकरण कर उन्हें सम्मानित किया था और राज्य ने जबलपुर में एक प्रतिमा लगाकर उन्हें सम्मान दिया।
निधन
15 फरवरी, 1948 को एक कार एक्सीडेंट में वो दुनिया छोड़ गईं। उनका कम जीवन काल आज भी युवा पीढ़ी के लिए एक मिसाल हैं।
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