Death Anniversary: एक महान समाज सुधारक और शिक्षाविद थे गोपाल कृष्ण गोखले, महात्मा गांधी भी मानते थे अपने राजनीतिक गुरु

भारतीयों को शिक्षित करने के लिए की थी सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी की स्थापना 
 
Gopal Krishna Gokhale

नई दिल्ली। गोपाल कृष्ण गोखले भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक थे। महात्मा गांधी ने राजनीति के बारे में उनसे बहुत कुछ सीखा और इसीलिए वह राष्ट्रपिता के राजनीतिक गुरु कहलाए। देश की आजादी और राष्ट्र निर्माण में गोपाल कृष्ण गोखले का योगदान अमूल्य है। आइए आज उनकी पुण्यतिथि पर जानते है उनके जीवन के कुछ रोचक तथ्य........

जीवन परिचय
 गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में 9 मई 1866 को हुआ था। उनके पिता कृष्ण राव पेशे से क्लर्क थे। उनकी माता का नाम वालुबाई गोखले था। गोखले ने 2 बार शादी की थी। गोखले का प्रथम विवाह सन 1880 में सावित्रीबाई से हुआ, तब गोखले की उम्र ज्यादा नही थी। उनकी पहली पत्नि किसी असाध्य रोग से ग्रसित थी। इसके बाद सन 1887 में उनका दूसरा विवाह हुआ, तब उनकी पहली पत्नि सावित्रीबाई जीवित थी। उनकी दूसरी पत्नि ने 2 बेटियों को जन्म दिया और सन 1899 में उनकी दूसरी पत्नि की मृत्यु हो गयी।  उनकी एक बेटी का नाम काशी(आनंदीबाई)था।

शिक्षा
गोखले ने कोथापुर के राजाराम हाई स्कूल में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। पढ़ाई में सराहनीय प्रदर्शन के लिए उन्हें सरकार की ओर से 20 रुपए की छात्रवृत्ति दी जाती थी। गोखले ने सन 1884 में ElphinstoneCollege से स्नातक पूरा किया। उनको अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान था जिसके कारण वो बिना किसी हिचकिचाहट और अत्यंत स्पष्टता के साथ अपने आप को अभिव्यक्त कर पाते थे।

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सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी की स्थापना 
सन 1905 में गोखले जब कांग्रेस के प्रेसिडेंट बने तो वे राजनैतिक ताकत के चरम पर थे और इसी समय उन्होंने सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की। इसकी स्थापना के पीछे उनका मत था कि भारतीयों को शिक्षित करना था। गोखले के अनुसार, “जब भारतीय शिक्षित होंगे तो वे अपने देश और समाज के प्रति जिम्मेदारी को समझेंगे और इसका निर्वाह भली – भांति करेंगे”।

बंग-भंग का नेतृत्व :
फूट-डालो और शासन करो की नीति के तहत वायसराय लार्ड कर्जन ने 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पूरे देश में बंग-भंग का विरोध किया गया। बंगाल से लेकर देश के अन्य हिस्सों में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी के स्वीकार का जबर्दस्त आन्दोलन चल पड़ा।
  एक तरफ जहां बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, विपिन चन्द्र पाल और अरविन्द घोष जैसे गरम दल के नेताओं ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया वहीं नरम दल की तरफ से गोपाल कृष्ण गोखले ने इसकी अगुवाई की। उन्होंने आज़ादी की लड़ाई के साथ ही देश में व्याप्त छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ आंदोलन चलाया।

निधन
भारत भूमि को गुलामी से आजाद कराने के लिए भारत के महान सपूतों में से एक इस वीर सपूत का 19 फरवरी 1915 को निधन हो गया। ऐसे महान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी रहे गोपाल कृष्ण गोखले की देशभक्ति आध्‍यात्मिकता पूर्ण थी।


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