Death Anniversary: पग-पग पर दिया गांधी जी का साथ, फिर भी इतिहास के पन्नों में गुम है कस्तूरबा गांधी का नाम

नई दिल्ली। वर्तमान समय में इतिहास के पन्नों में बहुत ही कम जगहों पर महात्मा गांधी की पत्नी..कस्तूरबा गांधी का जिक्र मिलता है...लेकिन शायद आप जानते नही है....कस्तूरबा गांधी वह महिला थी जिन्होंने मोहनदास करमचंद गांधी के जीवन में महात्मा गांधी से लेकर राष्ट्रपिता और बापू बनने तक....बहुत ही अहम रोल निभाया था...या यू कहें कि इन्ही के त्याग औऱ समर्पण के कारण ही मोहनदास करमचंद गांधी को राष्ट्रपिता और बापू की उपाधि मिली...........
जीवन परिचय
गांधी जी से 6 माह बड़ी कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल 1869 में काठियावाड़ के पोरबंदर नगर में हुआ था। कस्तूरबा गांधी के पिता 'गोकुलदास मकनजी' साधारण स्थिति के व्यापारी थे। उनकी माता का नाम व्रजकुंवरबा कपाडिया था। गोकुलदास मकनजी की कस्तूरबा तीसरी संतान थीं। कस्तूरबा भी बचपन में निरक्षर थीं और सात साल की अवस्था में 6 साल के मोहनदास के साथ उनकी सगाई कर दी गई। तेरह साल की आयु में उन दोनों का विवाह हो गया।
गांधी के साथ संघर्षों में दिया साथ
दोनों 1888 तक लगभग साथ-साथ ही रहे किंतु बापू के इंग्लैंड प्रवास के बाद से लगभग अगले बारह वर्ष तक दोनों को अलग रहना पडा था। इंग्लैंड प्रवास से लौटने के बाद शीघ्र ही बापू को अफ्रीका जाना पड़ा। जब 1896 में वे भारत आए तब बा को अपने साथ ले गए। तब से बा बापू के आदर्शों और विचारों का पालन करती थी। उन्होंने उनकी तरह ही अपने जीवन को सादा बना लिया। वे बापू के धार्मिक एवं देशसेवा के महाव्रतों में सदैव उनके साथ रहीं। यही उनके सारे जीवन का सार है।
कस्तूरबा गांधी को जाना पड़ा था जेल
कस्तूरबा गांधी..बापू के हर निर्णय और कार्य में हर तरह से साथ दिया था..वह प्रत्येक आंदोलन में सक्रिय थी और गिरफ़्तार होकर जेल भी गई। ‘बा’ का समर्पण उनके परिवार से अधिक मानवता और देश के प्रति था। ऐसे में उनकी सेवा समर्पण व देश के लिए पति, बच्चों के प्रेम सानिध्य का त्याग, इतिहास में दर्ज नहीं हो पाया.. उनका जीवन संघर्ष भरा था...आंदोलन का हिस्सा होकर भी उनका नाम आंदोलनों में नही आया।
दक्षिण अफ्रीका में लड़ी था रंगभेद की लड़ाई
कस्तूरबा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की लड़ाई में बापू के साथ रही और इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। 1913 में उन्हें 3 महीने के लिए जेल में डाला गया था। भारत आने के बाद उन्होंने बापू के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था।
स्वदेशी और महिला शिक्षा पर दिया जोर
कस्तूरबा गांधी ने निरक्षर होने के बाद भी.. आजादी की लड़ाई में बार-बार स्त्री शिक्षा और स्वदेशी आंदोलन की बात की। उन्होंने स्त्री शिक्षा के लिए अपने स्तर पर प्रयास भी किए थे। बापू के साथ वह जहां भी जाती थीं खास तौर पर महिलाओं को पढ़ने के लिए जागरूक करती थीं।
निधन
1944 में जनवरी में उन्हें दो बार दिल का दौरा पड़ा। इसके लिए उन्होंने आयुर्वेद का उपचार शुरु किया जिससे उन्हें काफी आराम भी मिला था लेकिन 22 फरवरी, 1944 को उन्हें एक बार फिर भयंकर दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गयी।
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