Birth Anniversary:‘आधुनिक युग की मीरा’ कही जाती है महादेवी वर्मा, उनकी रचनाओं में मिलती है संयम और त्याग की प्रबल भावना

‘आधुनिक युग की मीरा’ कही जाने वाली महादेवी वर्मा .. भारत की हिंदी साहित्य में छायावादी काल के प्रमुख चार स्तंभों में से एक थी...उन्हें कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला भी ‘हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती’भी कहते थे। महादेवी केवल कवयित्री, चित्रकर्ती और उत्कृष्ट गद्य लेखिका ही नहीं थीं बल्कि वह एक दार्शनिक और संस्कृत भाषा-साहित्य की परम विदुषी थी। वह स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाली अग्रणी महिला थी..
जीवन परिचय
महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद में 26 मार्च 1907 को हुआ था। वर्मा के माता का नाम हेमरानी देवी और पिता का नाम गोविंद प्रसाद वर्मा था।
शिक्षा
इन्होंने 1921 में आठवीं बोर्ड 1925 में 12वीं कक्षा पास की। 1932 में इन्होंने प्रयागराज विश्वविद्यालय से एम ए किया और इनकी दो कविता संग्रह रश्मि और विहार इस उम्र में प्रकाशित हो चुके थे।
व्यक्तिगत जीवन
महादेवी वर्मा का विवाह 1916 में नवाबगंज गंज कस्बे के स्वरूप नारायण वर्मा से हुआ था। इनके पति की मृत्यु 1966 में हुई जिसके बाद यह इलाहाबाद में ही रहने लगी।
करियर
वह इलाहाबाद से प्रकाशित ‘चाँद’ मासिक पत्रिका की संपादिका थीं और प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ नामक संस्था की स्थापना की थी।
उनकी कविताएं
उन्होंने कविताओं के साथ ही रेखाचित्र, संस्मरण, निबंध, डायरी आदि गद्य विधाओं में भी योगदान किया है। ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्य गीत’, ‘यामा’, ‘दीपशिखा’, ‘साधिनी’, ‘प्रथम आयाम’, ‘सप्तपर्णा’, ‘अग्निरेखा’ उनके काव्य-संग्रह हैं। रेखाचित्रों का संकलन ‘अतीत के चलचित्र’ और ‘स्मृति की रेखाएँ’ में किया गया है। ‘शृंखला की कड़ियाँ’, ‘विवेचनात्मक गद्य’, ‘साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध’, ‘संकल्पिता’, ‘हिमालय’, ‘क्षणदा’ उनके निबंधों का संकलन है।
उपलब्धियां
भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण पुरस्कारों से सम्मानित किया। उन्हें यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उनके सम्मान में जयशंकर प्रसाद के साथ युगल डाक टिकट भी जारी किया।
निधन
11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में उनका निधन हो गया था।
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