International Unemployment Day: 1929 की विश्वव्यापी आर्थिक महामंदी के बाद अंतर्राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस की हुई शुरूआत, जानें क्या है आर्थिक महामंदी का अर्थ

अंतर्राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस हर साल 6 मार्च को मनाया जाता है। 1929 में आई विश्वव्यापी आर्थिक महामंदी के दौरान दुनिया के अधिकतर हिस्सों में उत्पादन, आय, व्यापार और रोज़गार में भारी कमी आ गई थी, जिससे भारी संख्या में लोग भुखमरी और गरीबी का शिकार हो गये थे। इतना ही नहीं, उद्योग बंद होने से बड़े-बड़े उद्योगपति भी क़र्ज़ में डूब गए थे। तब बहुत बड़े पैमाने पर एक अंतर्राष्ट्रीय अभियान चलाया गया था जिसमें दुनिया भर के प्रमुख शहरों से सैकड़ों हजारों लोगों विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर आए थे।
इतिहास
6 मार्च, 1930 को बेरोजगारी के खिलाफ विरोध के "अंतर्राष्ट्रीय दिवस" के रूप में स्थापित करने के लिए ईसीसीआई में एक प्रस्ताव रखा गया था, यह निर्णय 16 जनवरी के ईसीसीआई के सत्र में लिया गया था। इस अभियान को 31 जनवरी को बर्लिन में आयोजित कम्युनिस्ट पार्टियों के प्रतिनिधियों के एक सम्मेलन द्वारा और विकसित किया गया था, जो कॉमिन्टर्न के पश्चिम यूरोपीय ब्यूरो के तत्वावधान में आयोजित किया गया था। समन्वित कार्यक्रम शुरू में 26 फरवरी, 1930 के लिए निर्धारित किए गए थे। 17 फरवरी को या दुनिया भर के कम्युनिस्ट प्रेस में यह घोषणा की गई कि कार्यकारी समिति ऑफ द कॉमिन्टर्न ने अंतर्राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस को स्थगित कर दिया था - इस घटना को आठ दिन पीछे करके 6 मार्च कर दिया था।
आर्थिक मंदी का अर्थ
आर्थिक मंदी अर्थव्यवस्था का एक कुचक्र है जिसमें फंसकर आर्थिक वृद्धि रुक जाती है और देश के विकास कार्यों में बाधा आ जाती है। इस दौरान बाज़ार में वस्तुओं की भरमार होती है लेकिन खरीदने वाला कोई नहीं होता है। उत्पादों की आपूर्ति अधिक व मांग कम होने से अर्थव्यवस्था असंतुलित हो जाती है।
महामंदी का विश्व पर प्रभाव
दुनिया के अधिकांश देश इस महामंदी की चपेट में आ गये थे। बात करें औद्योगिक देशों की, तो अमेरिका को इस आर्थिक महामंदी की सबसे ज़्यादा मार झेलनी पड़ी थी। अमेरिका की अर्थव्यवस्था जितनी तेजी से समृद्ध हो रही थी, उतनी ही तेजी से लुढ़क भी गई थी।
मंदी के चलते अमेरिकी बैंकों ने घरेलू क़र्जे़ देना बंद कर दिया था और जो क़र्जे़ पहले दिये जा चुके थे,उनकी वसूली शुरू कर दी थी। लेकिन कीमतों में कमी के कारण किसान से लेकर उद्योगपति तक, सभी आर्थिक संकट का सामना कर रहे थे और कई परिवार क़र्जे़ चुकाने में असमर्थ थे। ऐसे में उन परिवारों के मकानों और कारों समेत सभी ज़रूरी चीजें कुर्क कर ली गईं थी।
हज़ारों बैंक क़र्जे़ वसूल न कर पाने, ग्राहकों की जमा पूंजी न लौटा पाने और निवेश की गई धनराशि में लाभ न मिलने पर दिवालिया हो गये थे और उन्हें बंद कर दिया गया था। इस प्रकार अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली भी ध्वस्त हो गई थी। आंकड़ों की बात करें तो, साल 1933 तक 4000 से ज़्यादा बैंक बंद हो चुके थे और साल 1929 से 1932 के बीच करीब 1,10,000 कंपनियां नष्ट हो गईं थी। इतनी बड़ी संख्या में बैंक और कंपनियाँ बंद होने से तेजी से बेरोज़गारी बढ़ी और लोग काम की तलाश में दूर-दूर तक जाने लगे।
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