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मोल्दोवा के मतदाताओं ने रूसी हाइब्रिड युद्ध को नकारा, यूरोपीय भविष्य चुना

मोल्दोवा की सत्तारूढ़ यूरोपीय संघ-समर्थक पार्टी ने हाल ही में हुए संसदीय चुनावों में निर्णायक जीत हासिल की है। शीर्ष यूरोपीय संघ के अधिकारियों ने इस परिणाम को देश के पश्चिम की ओर बढ़ने की दिशा में एक स्पष्ट जनादेश बताया है, भले ही रूसी हस्तक्षेप के व्यापक आरोप लगे हों। यूक्रेन और रोमानिया के बीच रणनीतिक रूप से स्थित इस छोटे राष्ट्र के लिए यूरोपीय संघ के साथ एकीकरण की दिशा में अपने प्रयास को बनाए रखने के लिए यह चुनाव एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
यूरोपीय संघ के लिए निर्णायक जनादेश
सोमवार को आए लगभग-संपूर्ण परिणामों ने पुष्टि की कि मोल्दोवा की यूरोपीय संघ-समर्थक पार्टी, एक्शन एंड सॉलिडेरिटी पार्टी (PAS), ने 50 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए हैं, जो इसे 101 सीटों वाली संसद में स्पष्ट बहुमत की गारंटी देता है। रूस-समर्थक विपक्ष पर यह जीत, जिसे लगभग 24 प्रतिशत वोट मिले, का ब्रुसेल्स में तुरंत स्वागत किया गया।
यूरोपीय परिषद के प्रमुख एंटोनियो कोस्टा ने इस वोट को मोल्दोवा के नागरिकों का “जोरदार और स्पष्ट” संदेश बताया। कोस्टा ने एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा, “मोल्दोवा के लोगों ने बात की है और उनका संदेश ज़ोरदार और स्पष्ट है। उन्होंने रूस के दबाव और हस्तक्षेप के बावजूद लोकतंत्र, सुधार और एक यूरोपीय भविष्य को चुना।” उन्होंने यह भी कहा कि यूरोपीय संघ हर कदम पर मोल्दोवा के साथ खड़ा है।
इसी भावना को प्रतिध्वनित करते हुए, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने मोल्दोवा के लोगों को बधाई दी और कहा कि “डर या विभाजन बोने का कोई भी प्रयास आपके संकल्प को तोड़ नहीं सका। आपने अपनी पसंद स्पष्ट कर दी है: यूरोप। लोकतंत्र। स्वतंत्रता। हमारा द्वार खुला है।”
एक भू-राजनीतिक फ़ॉल्ट लाइन
लगभग 25 लाख की आबादी वाला मोल्दोवा, एक पूर्व सोवियत गणराज्य, लंबे समय से एक भू-राजनीतिक फ़ॉल्ट लाइन रहा है। 1991 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से, यह राष्ट्र पश्चिम के साथ गठबंधन करने या मास्को के साथ सोवियत-युग के संबंध बनाए रखने को लेकर आंतरिक संघर्ष से जूझ रहा है। इस संघर्ष को इसकी पूर्वी सीमा पर स्थित रूस-समर्थित अलग हुए क्षेत्र ट्रांसनिस्ट्रिया की उपस्थिति से और भी जटिलता मिलती है।
2022 में पड़ोसी यूक्रेन पर रूस के पूर्ण पैमाने पर आक्रमण के बाद यूरोपीय संघ के साथ एकीकृत होने के देश के संकल्प को महत्वपूर्ण गति मिली। मोल्दोवा को उसी वर्ष आधिकारिक तौर पर यूरोपीय संघ के उम्मीदवार का दर्जा मिला और इसने 2024 में औपचारिक रूप से प्रवेश वार्ता शुरू की। इस राह का मास्को से तीव्र विरोध हुआ है, जिससे मोल्दोवा के अधिकारियों के अनुसार राज्य को अस्थिर करने और यूरोपीय संघ की उसकी बोली को पटरी से उतारने के उद्देश्य से एक “हाइब्रिड युद्ध” शुरू हो गया है।
रूसी ‘हाइब्रिड युद्ध’ का मुकाबला
हाल के संसदीय चुनावों पर व्यापक रूप से परिष्कृत रूसी हस्तक्षेप के आरोपों का साया रहा, जिसमें कथित तौर पर बड़े पैमाने पर वोट खरीदने की योजनाएं, समन्वित दुष्प्रचार अभियान और सरकारी और चुनावी बुनियादी ढांचे पर साइबर हमले शामिल थे। मोल्दोवा के अधिकारियों ने बार-बार चेतावनी दी है कि रूस देश में सत्ता हथियाने की कोशिश में “करोड़ों” यूरो खर्च कर रहा है।
विक्ट्री के बाद, एक्शन एंड सॉलिडेरिटी पार्टी के नेता इगोर ग्रोसू ने कहा, “रूसी संघ ने अपनी सबसे नीच हर चीज़ को लड़ाई में झोंक दिया — पैसे के पहाड़, झूठ के पहाड़, अवैधताओं के पहाड़।” उन्होंने आगे कहा, “इन चुनावों में केवल पीएएस ने ही नहीं जीता, बल्कि लोगों ने जीता,” लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लचीलेपन को रेखांकित करते हुए।
उच्च मुद्रास्फीति और गरीबी से जूझ रहे एक राष्ट्र के लिए, यूरोपीय एकीकरण का मुद्दा आंतरिक रूप से आर्थिक स्थिरता और सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। यूरोपीय संघ ने मोल्दोवा की आर्थिक लचीलापन और ऊर्जा स्वतंत्रता को मजबूत करने के लिए अरबों डॉलर के ऋण और अनुदान प्रदान करके अपनी वित्तीय सहायता बढ़ाई है — यह एक महत्वपूर्ण भेद्यता का क्षेत्र है जिसका मास्को अक्सर फायदा उठाता है। अंतिम परिणाम मोल्दोवा के मतदाताओं की यूरोपीय-समर्थक प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है, जो सरकार को यूरोपीय संघ की सदस्यता के लिए आवश्यक सुधारों में तेजी लाने के लिए एक स्पष्ट मार्ग प्रदान करता है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के मोल्दोवा के एसोसिएट प्रोफेसर क्रिस्टियन कैंटिर ने कहा, “यह जीत मोल्दोवा की सरकार को यूरोपीय संघ के प्रवेश के लिए आवश्यक कठोर, और अक्सर दर्दनाक, सुधारों को निर्णायक रूप से आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक राजनीतिक पूंजी और स्थिरता प्रदान करती है।” “यह पार्टी को एक अस्थिर गठबंधन बनाने से बचाता है और यूरोपीय संघ में शामिल होने के अपने दीर्घकालिक लक्ष्य में निरंतरता की अनुमति देता है, एक ऐसा कदम जिसे मोल्दोवा के लोग अपनी सुरक्षा और समृद्धि के लिए स्पष्ट रूप से आवश्यक मानते हैं।”
यह स्पष्ट जनादेश अब सरकार को अपने भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों और संस्थागत सुधारों को जारी रखने में सक्षम बनाएगा, हालांकि चुनौतियां बनी हुई हैं, विशेष रूप से ट्रांसनिस्ट्रिया की अनसुलझी स्थिति, जो पूर्ण यूरोपीय संघ के एकीकरण के सुरक्षा और प्रशासनिक पहलुओं को जटिल बनाती है।
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बुनियादी ढाँचे के संकट के बीच जैश-ए-मोहम्मद (JeM) ने लॉन्च किया पहला महिला विंग

पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन और संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित इकाई, जैश-ए-मोहम्मद (JeM) ने अपने पहले समर्पित महिला विंग “जमात-उल-मोमिनात” को लॉन्च करने की घोषणा करके एक महत्वपूर्ण संरचनात्मक बदलाव किया है। JeM प्रमुख मौलाना मसूद अजहर के नाम से जारी एक पत्र के माध्यम से सामने आया यह अभूतपूर्व कदम, संगठन के पारंपरिक सिद्धांत से गंभीर विचलन का संकेत देता है और इसने पूरे क्षेत्र में सुरक्षा संबंधी चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
खबरों के अनुसार, नई महिला ब्रिगेड के लिए भर्ती अभियान बुधवार, 8 अक्टूबर को पाकिस्तान के बहावलपुर में स्थित मरकज उस्मान-ओ-अली जैसे JeM के स्थापित धार्मिक और वित्तीय केंद्रों से शुरू हुआ। भारतीय खुफिया एजेंसियाँ इस महिला विंग के गठन को एक हताश रणनीतिक बदलाव के रूप में देख रही हैं। यह कदम संगठन के खिलाफ बड़े आतंकवाद विरोधी अभियानों के बाद उठाया गया है, खासकर उस ऑपरेशन के बाद जिसमें सादिया अजहर के पति मारे गए थे।
JeM का पारंपरिक सिद्धांत और झटके
जैश-ए-मोहम्मद, जो देवबंदी विचारधारा पर आधारित एक संगठन है, 2001 में भारतीय संसद पर हमले और 2019 में पुलवामा हमले जैसी अन्य घातक कार्रवाइयों के लिए जिम्मेदार रहा है। ऐतिहासिक रूप से, लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और हिजबुल मुजाहिदीन (HM) जैसे पाकिस्तान-आधारित अन्य प्रमुख संगठनों की तरह, JeM ने भी महिलाओं को सशस्त्र जिहाद में शामिल होने या प्रत्यक्ष मुकाबले की भूमिकाओं में भाग लेने से रोकने की सख्त नीति बनाए रखी थी।
हालांकि, संगठन को मिले झटकों की एक श्रृंखला के बाद इस नीति में अपरिवर्तनीय बदलाव होता दिख रहा है। महिला विंग के गठन का कारण ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान संगठन को हुए बुनियादी ढांचे के नुकसान और प्रमुख कर्मियों की क्षति को माना जाता है। 7 मई को हुए इस ऑपरेशन में भारतीय सेना ने JeM के मरकज सुभानअल्लाह बेस को निशाना बनाया था, जिसमें एक प्रमुख कमांडर और सादिया अजहर के पति, युसूफ अजहर, मारे गए थे। खुफिया इनपुट से पता चलता है कि मसूद अजहर और उनके भाई तलहा अल-सैफ ने ऑपरेशन सिंदूर और उससे पहले हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद JeM की परिचालन संरचना में महिलाओं को शामिल करने के लिए संयुक्त रूप से मंजूरी दी थी, जिसे वे संगठन की क्षमता के पुनर्निर्माण के लिए आवश्यक मानते हैं।
भर्ती की रणनीति
जमात-उल-मोमिनात नाम का नया विंग कथित तौर पर दो महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय समूहों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है: मारे गए JeM कमांडरों की पत्नियाँ और महिला रिश्तेदार—भावनात्मक बंधनों और वफादारी का लाभ उठाते हुए—और संगठन के कई केंद्रों में पढ़ने वाली आर्थिक रूप से कमजोर महिलाएँ। भर्ती अभियान पाकिस्तान के बहावलपुर, कराची, मुजफ्फराबाद, कोटली, हरिपुर और मनसेहरा सहित कई शहरों में केंद्रित है।
सुरक्षा विश्लेषकों के लिए भर्ती लक्ष्यों में यह बदलाव विशेष रूप से चिंताजनक है। महिला गुर्गों का उपयोग आतंकी समूहों को कई परिचालन लाभ प्रदान करता है, जिसमें रसद, आवाजाही और संभावित खुफिया जानकारी जुटाने में कम जाँच शामिल है, यह एक ऐसी रणनीति है जिसका इस्तेमाल पहले लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) और बोको हराम जैसे समूहों द्वारा व्यापक रूप से किया गया था।
लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) प्रकाश मेनन, जो एक प्रतिष्ठित आतंकवाद विरोधी विश्लेषक हैं, ने इस नीतिगत बदलाव के रणनीतिक निहितार्थों पर प्रकाश डाला। जनरल मेनन ने कहा, “यह कदम JeM द्वारा एक स्पष्ट रणनीतिक बदलाव है। प्रमुख परिचालन कमांडरों को खोने के बाद वे अपनी रैंकों की भरपाई के लिए भावनात्मक पूंजी और हताशा का लाभ उठा रहे हैं।” उन्होंने आगे कहा, “महिलाओं और कमजोर जनसांख्यिकी का उपयोग करने से उन्हें संवेदनशील खुफिया जानकारी जुटाने और रसद तक बेहतर पहुंच मिलती है, ऐसे क्षेत्र जहां पुरुष गुर्गे अधिक जांच का शिकार हो सकते हैं। यह भारत के लिए आतंकवाद विरोधी मैट्रिक्स को काफी जटिल बना देता है।“
संकट के बीच पुनर्निर्माण
महिला विंग का गठन JeM के वर्तमान परिचालन संकट के अनुरूप है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद, JeM, HM और LeT सहित आतंकवादी संगठन कथित तौर पर पाकिस्तान के कम सुलभ खैबर पख्तूनख्वा (KPK) प्रांत में अपना प्राथमिक ठिकाना स्थानांतरित कर चुके हैं। अपने नष्ट हुए बुनियादी ढांचे और वित्तीय क्षमता के पुनर्निर्माण के एक हताश प्रयास में, पाकिस्तान स्थित हैंडलर सक्रिय रूप से सार्वजनिक दान मांग रहे हैं, अक्सर धार्मिक या मानवीय अपीलों को एक ढाल के रूप में इस्तेमाल करते हुए।
हालांकि इस्लामिक स्टेट (ISIS), हमास और LTTE जैसे समूहों ने ऐतिहासिक रूप से महिला गुर्गों, जिनमें आत्मघाती हमलावर भी शामिल हैं, का उपयोग किया है, लेकिन JeM और LeT द्वारा महिलाओं को सशस्त्र या अर्ध-सशस्त्र भूमिकाओं में शामिल करना दक्षिण एशियाई आतंकवाद के परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण और खतरनाक विकास को दर्शाता है। यह सक्रिय प्रतिभागियों के समूह को व्यापक बनाने और संगठन की गैर-लड़ाकू रसद और वैचारिक मशीनरी में महिलाओं को एकीकृत करने का स्पष्ट इरादा इंगित करता है, जिससे पुरुष गुर्गों को विशेष रूप से मुकाबला प्रशिक्षण और योजना पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति मिलती है।
भारतीय सुरक्षा और खुफिया प्रतिष्ठान को अब सीमा पार खतरे के इस नए आयाम को संबोधित करने के लिए अपने निगरानी प्रोटोकॉल को अनुकूलित करने की आवश्यकता होगी, खासकर JeM से जुड़े शैक्षणिक और सामाजिक कल्याण संस्थानों के भीतर वैचारिक कट्टरता पर ध्यान केंद्रित करते हुए। JeM में महिलाओं द्वारा निष्क्रिय सहायक भूमिका से सक्रिय परिचालन भूमिका की ओर बदलाव समूह के जीवित रहने और पुनर्गठन के प्रयासों में एक गंभीर वृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है।
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मोदी-स्टार्मर वार्ता: व्यापार, सुरक्षा पर बनी नई साझेदारी

यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने गुरुवार को अपनी पहली आधिकारिक भारत यात्रा की शुरुआत मुंबई के राजभवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक उच्च-स्तरीय बैठक से की, जो भारत-ब्रिटेन द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण चरण का संकेत है। गर्मजोशी भरे माहौल में हुई प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता में व्यापार, रक्षा, शिक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने और क्षेत्रीय स्थिरता की चिंताओं को दूर करने पर गहन ध्यान केंद्रित किया गया।
यह यात्रा, जो PM मोदी की जुलाई में हुई सफल यूके यात्रा के बाद हुई है, पारंपरिक राजनयिक आदान-प्रदान से परे जाकर दोनों देशों के बीच गहराते रणनीतिक तालमेल को रेखांकित करती है। चर्चा वैश्विक स्थिरता और पारस्परिक रूप से लाभप्रद आर्थिक विकास के साझा दृष्टिकोण पर आधारित थी।
‘विश्वास, प्रतिभा और प्रौद्योगिकी’ पर आधारित साझेदारी
बैठक के बाद एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, PM मोदी ने नए संबंधों को संचालित करने वाले रणनीतिक ढांचे को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा, “भारत और यूके के बीच साझेदारी विश्वसनीयता, प्रतिभा और प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित है। भारत की गतिशीलता और यूके की विशेषज्ञता एक अद्वितीय तालमेल बनाने के लिए एकजुट होती है। हमारी साझेदारी भरोसेमंद, प्रतिभा- और प्रौद्योगिकी-आधारित है।”
PM स्टार्मर ने भी इन भावनाओं को दोहराया और इस वार्ता को “भविष्य पर ध्यान केंद्रित करने वाली एक नई आधुनिक साझेदारी” की शुरुआत बताया। यूके की मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता की ओर से आया यह राजनीतिक समर्थन भारत के साथ संबंध के महत्वपूर्ण महत्व के बारे में ब्रिटेन में एक मजबूत, द्विदलीय सहमति का सुझाव देता है, जिससे लंदन में भविष्य के सरकारी परिवर्तनों की परवाह किए बिना निरंतरता सुनिश्चित होती है।
शैक्षिक और आर्थिक सफलताएँ
वार्ता का एक महत्वपूर्ण परिणाम शैक्षिक सहयोग के संबंध में की गई घोषणा थी। PM मोदी ने खुलासा किया कि नौ यूके विश्वविद्यालय भारत में परिसर स्थापित करने के लिए तैयार हैं, जिसमें साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय पहले से ही गुरुग्राम में परिचालन में है। इस कदम से भारत के उच्च शिक्षा परिदृश्य में बदलाव आने, छात्रों को स्थानीय स्तर पर विश्व स्तरीय अवसर प्रदान करने और अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
आर्थिक मोर्चे पर, चर्चा मुख्य रूप से इस वर्ष की शुरुआत में हस्ताक्षरित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर केंद्रित रही। स्टार्मर ने FTA को “यूरोपीय संघ छोड़ने के बाद से हमारे द्वारा किया गया सबसे बड़ा सौदा” बताया, और भारत के लिए भी इसके ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया। इस समझौते से द्विपक्षीय व्यापार में सालाना £25.5 बिलियन की पर्याप्त वृद्धि होने का अनुमान है, जो आर्थिक एकीकरण के महत्वाकांक्षी दायरे को दर्शाता है।
नेताओं ने महत्वपूर्ण खनिजों पर सहयोग करने के लिए एक उद्योग गिल्ड और आपूर्ति श्रृंखला वेधशाला स्थापित करने पर भी सहमति व्यक्त की, जो डिजिटल और स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र है। धनबाद में इंडियन स्कूल ऑफ माइंस में एक उपग्रह परिसर इस प्रयास को और समर्थन देगा, जो मूर्त, प्रौद्योगिकी-संचालित परिणामों के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।
रणनीतिक और रक्षा तालमेल
रक्षा सहयोग को एक बड़ा बढ़ावा मिला, इस घोषणा के साथ कि भारतीय वायु सेना (IAF) के उड़ान प्रशिक्षकों को यूके की रॉयल एयर फोर्स (RAF) में प्रशिक्षकों के रूप में सेवा देने के लिए प्रतिनियुक्त किया जाएगा। यह सैन्य प्रशिक्षण विनिमय पारस्परिक विश्वास और अंतर-संचालनीयता के गहरे स्तर को उजागर करता है।
भू-राजनीतिक मोर्चे पर, चर्चा में इंडो-पैसिफिक, पश्चिम एशिया में शांति और स्थिरता, और चल रहे यूक्रेन संघर्ष को शामिल किया गया। PM मोदी ने वैश्विक संघर्षों पर भारत के सैद्धांतिक रुख को दोहराया: “यूक्रेन संघर्ष और गाजा के मुद्दों पर, भारत संवाद और कूटनीति के माध्यम से शांति के लिए सभी प्रयासों का समर्थन करता है।” उन्होंने एक स्वतंत्र और खुले क्षेत्र को बनाए रखने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा बढ़ाने की भारत की प्रतिबद्धता की भी पुष्टि की।
शैक्षिक पहलों के दीर्घकालिक प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए, वैश्विक शिक्षा नीति विश्लेषक, प्रोफेसर आलोक मिश्रा ने कहा: “नौ यूके विश्वविद्यालय परिसरों की स्थापना शैक्षिक सहयोग में एक नया अध्याय दर्शाती है। यह केवल भारत में विदेशी ब्रांडों को लाने के बारे में नहीं है; यह उच्च-गुणवत्ता वाले, अंतर्राष्ट्रीयकृत शिक्षा केंद्र बनाने के बारे में है जो प्रतिभा पलायन को उलट सकते हैं और वैश्विक चुनौतियों पर संयुक्त अनुसंधान को बढ़ावा दे सकते हैं।“
यात्रा का समापन स्टार्मर द्वारा फुटबॉल प्रशंसकों से मिलने और दिवाली उत्सव से पहले मुंबई में दीये जलाने के साथ हुआ, जो बढ़ते सांस्कृतिक संबंधों को दर्शाता है। इसे यश राज फिल्म्स की तीन प्रमुख प्रस्तुतियों की 2026 से यूके में शूटिंग की घोषणा से और बल मिला। इस यात्रा ने भारत-यूके संबंध की दिशा को सफलतापूर्वक मजबूत किया, इसे दोनों देशों के भविष्य के रणनीतिक हितों के लिए एक मूलभूत साझेदारी के रूप में स्थापित किया।
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कनाडाई विदेश मंत्री अनीता आनंद की भारत यात्रा, राजनयिक संबंधों को पटरी पर लाने का संकेत

कनाडा की विदेश मंत्री अनीता आनंद अगले सप्ताह भारत का दौरा करने वाली हैं, जो इस वर्ष कार्यभार संभालने के बाद देश की उनकी पहली आधिकारिक यात्रा होगी। यह यात्रा एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हो रही है, जो पिछले दो वर्षों से चल रहे गहन तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों को फिर से स्थापित करने के लिए नई दिल्ली और ओटावा दोनों द्वारा किए जा रहे सतर्क लेकिन दृढ़ प्रयास का संकेत है।
सितंबर 2023 में तत्कालीन कनाडाई प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद दोनों लोकतांत्रिक राष्ट्रों के बीच संबंध काफी बिगड़ गए थे। ट्रूडो ने सार्वजनिक रूप से कनाडा की धरती पर खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में “भारत सरकार के एजेंटों” की संलिप्तता का सुझाव दिया था। भारत ने इन आरोपों को “बेतुका और राजनीति से प्रेरित” बताते हुए दृढ़ता से खारिज कर दिया था, और पलटवार करते हुए कनाडा पर खालिस्तानी आतंकवादियों को अपने क्षेत्र से संचालित करने और उन्हें सुरक्षित पनाहगाह प्रदान करने का आरोप लगाया था। इसके परिणामस्वरूप राजनयिकों का पारस्परिक निष्कासन हुआ और भारत द्वारा कुछ वीज़ा सेवाओं को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया, जिससे उच्च-स्तरीय जुड़ाव रुक गया था।
संबंधों में पिघलाव की नींव
वर्तमान यात्रा पिछले कुछ महीनों में फिर से शुरू हुए, हालांकि अस्थाई, जुड़ाव की नींव पर आधारित है। संबंधों में पिघलाव का एक महत्वपूर्ण संकेत जून में तब मिला जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने जी7 शिखर सम्मेलन में अपने कनाडाई समकक्ष मार्क कार्नी (जस्टिन ट्रूडो की जगह) से मुलाकात की। इसके बाद 29 सितंबर को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा से इतर विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और मंत्री आनंद के बीच “एक अच्छी बैठक” हुई।
डॉ. जयशंकर ने बाद में प्रगति का स्वागत करते हुए एक्स पर लिखा, “आज सुबह न्यूयॉर्क में कनाडा की एफएम @AnitaAnandMP के साथ एक अच्छी बैठक हुई। संबंधों को फिर से स्थापित करने के लिए उच्चायुक्तों की नियुक्ति स्वागत योग्य है। आज इस संबंध में आगे के कदमों पर चर्चा की। भारत में एफएम आनंद का स्वागत करने की प्रतीक्षा है।”
अगस्त में उच्चायुक्तों की बहाली—ओटावा में भारत के लिए दिनेश पटनायक और दिल्ली में कनाडा के लिए क्रिस्टोफर कूटर—ने आगे बढ़ने के लिए आवश्यक संस्थागत तंत्र प्रदान किया। इसके अलावा, कनाडा की उप विदेश मंत्री डेविड मॉरिसन और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नथाली जी. ड्रौइन के हालिया दिल्ली दौरे से पता चलता है कि सुरक्षा और खुफिया संवाद फिर से शुरू हो गया है, जो मरम्मत प्रक्रिया का एक केंद्रीय घटक है।
सामरिक और आर्थिक एजेंडा
उम्मीद है कि मंत्री आनंद का एजेंडा सुरक्षा सहयोग को सामान्य बनाने पर केंद्रित होगा, जो कनाडा की धरती का उपयोग करने वाले कट्टरपंथी तत्वों पर भारत की चिंताओं को देखते हुए आवश्यक है। आर्थिक रूप से, व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) के लिए बातचीत में ठहराव, जिसका उद्देश्य $10 बिलियन के व्यापार संबंध को बढ़ावा देना है, दोनों देशों के व्यापारिक समुदायों के लिए एक प्रमुख चिंता बनी हुई है। आगामी यात्रा से इन उच्च दांव वाली आर्थिक वार्ताओं को फिर से शुरू करने का मार्ग प्रशस्त होने की उम्मीद है।
रणनीतिक मामलों के एक प्रमुख विशेषज्ञ, डॉ. सी. राजा मोहन, ने इस राजनीतिक जुड़ाव की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। “आनंद की यात्रा राजनीतिक बयानबाजी से सामरिक आवश्यकता को अलग करने में एक महत्वपूर्ण कदम है। दोनों राष्ट्र महसूस करते हैं कि कार्यात्मक सुरक्षा सहयोग, विशेष रूप से खालिस्तान मुद्दे से संबंधित, को कनाडाई घरेलू राजनीति की वेदी पर बलिदान नहीं किया जा सकता है,” डॉ. मोहन ने कहा। “एजेंडे को आतंकवाद विरोधी और आर्थिक सहयोग पर ठोस डिलिवरेबल्स को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि उस विश्वास को बहाल किया जा सके जो पिछले साल गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हुआ था।”
यात्रा का परिणाम इन महत्वपूर्ण वार्ताओं के पुनरारंभ को मज़बूत करने और एक राजनीतिक तंत्र स्थापित करने की इसकी क्षमता से मापा जाएगा जो भविष्य के घरेलू दबावों से राजनयिक संबंध को बचा सके। हालाँकि निज्जर मामले की छाया अभी भी बनी हुई है, लेकिन व्यापार, आव्रजन और इंडो-पैसिफिक सुरक्षा जैसे साझा हितों पर विश्वास बहाल करने और सामान्य आधार खोजने की दोनों पक्षों की प्रतिबद्धता ही इस राजनयिक रीसेट को संचालित करने वाली अंतर्निहित अनिवार्यता है। मंत्री आनंद की यह यात्रा भारत और कनाडा के कूटनीतिक गतिरोध को वास्तव में पार कर सकते हैं या नहीं, इसकी कसौटी होगी।
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